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Thursday, June 16, 2022

प्राकृतिक वनस्पति

 प्राकृतिक वनस्पति

वनस्पति : वनस्पति से तात्पर्य वृक्षों, झाड़ियों, घासों और लताओं आदि के समूह अथवा पौधों की विभिन्न प्रजातियों से हैं, जो एक निश्चित पर्यावरण में पाई जाती हैं।

 वन : वन से तात्पर्य संपूर्ण वनस्पतियों, वन्यजीव एवं आस-पास के वातावरण को समाहित करता हैं।

भारत में वनों के प्रकार - भारत में वनों को मुख्यतः 5 भागों में बाँट सकते हैं - 

  1. उष्णकटिबंधीय सदाबहार वन
  2. उष्णकटिबंधीय पर्णपाती वन
  3. उष्णकटिबंधीय कांटेदार वन
  4. पर्वतीय वन या शंकुधारी वन
  5. डेल्टाई वन या मैंग्रोव वन या ज्वारीय वन
वन को विस्तार पूर्वक पढ़ने से पहले हम वनस्पति के विषय में कुछ महत्वपूर्ण बिंदु देखेंगे कि वनस्पति तापमान पर कैसे निर्भर करती है और तापमान के अनुसार वनस्पति खंड को किस प्रकार विभाजित किया गया हैं - 
उष्णकटिबंधीय सदाबहार वन, उष्णकटिबंधीय पर्णपाती वन, उष्णकटिबंधीय कांटेदार वन, पर्वतीय वन या शंकुधारी वन, डेल्टाई वन

उष्णकटिबंधीय सदाबहार (सदापर्णी) वन

  • सदाबहार का अर्थ -  ऐसे पेड़-पौधे जो वर्ष भर हरे-भरे रहते हैं।
  • ये वन भारत में अत्यधिक आर्द्रता वाले भागों में पाए जाते हैं।
  • जिन क्षेत्रों का वार्षिक तापमान 22C से अधिक , वार्षिक वर्षा 250 cm से अधिक तथा आर्द्रता 70% से अधिक पायी जाती हैं, वहाँ पर उष्णकटिबंधीय सदाबहार वन पाये जाते हैं।
  • भारत में उष्णकटिबंधीय सदाबहार वन ः पश्चिमी घाट के पश्चिमी ढाल में या सहाद्रि क्षेत्र, नीलगिरी की पहाड़ियाँ, पर पाएँ जाते हैं।
  • इस प्रकार के वनों के पेड़ सघन, लंबे तथा बहुत हरे होते हैं।
  • घास प्रायः अनुपस्थित रहती हैं। इन वृक्षों की लकड़ियाँ कठोर होती हैं।
  • अंडमान-निकोबार ‘उष्णकटिबंधीय सदाबहार वन का घर’ कहलाता हैं।
  • यहाँ पाये जाने वाले वृक्ष - सिनकोना, महोगनी, रोजवुड, आर्किड, फर्न (फूल/बीज रहित), आबनूस, बाँस तथा ताड़ 

उष्णकटिबंधीय सदाबहार वन के प्रकार - उष्णकटिबंधीय वन को वर्षा के आधार पर दो भागों में बाँटा जाता हैंः

  1. उष्णकटिबंधीय आर्द्र सदाबहार वन ः इस प्रकार के वन सदैव हरे-भरे रहते हैं।
  2. उष्णकटिबंधीय अर्द्ध आर्द्र सदाबहरा वन ः इस प्रकार के हसेशा हरे-भरे नही होते हैं। ये वन भारत में सबसे महत्वपूर्ण व्यवसायिक वन पाये जाते हैं।

उष्णकटिबंधीय पर्णपाती वन -

  • इसे उष्णकटिबंधीय “पतझड वन” भी कहते हैं।
  • इस वन को मानसूनी वन के नाम से भी जाना जाता हैं। 
  • जिन क्षेत्रों में 70 से 200 cm के मध्य वार्षिक वर्षा होती हैं, उष्णकटिबंधीय पर्णपाती वन पाये जाते हैं।
  • इस प्रकार के वृक्ष शुष्क ग्रीष्म ऋतु में 6 से 8 सप्ताह के लिए अपनी पत्तियॉ गिरा देती हैं।

जल के उपलब्धि के आधार पर उष्णकटिबंधीय पर्णपाती वन को दो भागों में बाँटा जाता हैं

    1.उष्णकटिबंधीय आर्द्र पर्णपाती वन - 
  • इन वन के विकास हेतु 100 से 200 cm तक वार्षिक वर्षा उपयुक्त होती हैं।
  • इस प्रकार के वन शिवालिक के गिरिपद, भाबर एवं तराई क्षेत्र, पश्चिमी घाट (सह्याद्रि) के पूर्वी ढाल, छोटा नागपुर के हिस्से में विस्तार हैं। 
  • यहाँ पाये जाने वाले प्रमुख वृश्र - साल, सागौन, शीशम, चंदन, महुआ
    2.उष्णकटिबंधीय शुष्क पर्णपाती वन - 
  • इन वन के विकास हेतु 70 से 100 cm तक वार्षिक वर्षा उपयुक्त होती हैं।
  • यहाँ के प्रमुख वृक्ष - तेंदू, बेल, खैर, 
  • Extra Point -  खैर वृक्ष का लकड़ी का प्रयोग कत्था बनाने के लिए तथा तेंदू वृक्ष के पत्ते का प्रयोग बीड़ी बनाने के लिए किया जाता हैं। भारत में सबसे ज्यादा तेंदु पत्ते का उत्पादन करने वाला राज्य मध्य प्रदेश हैं।

उष्णकटिबंधीय कांटेदार वन

  • इन वन के विकास हेतु 70 cm से कम वार्षिक वर्षा उपयुक्त होती हैं।
  • इसके अंतर्गत भारत के उत्तरी एवं उत्तरी पश्चिमी क्षेत्र (हरियााणा, राजस्थान, गुजरात), मध्य प्रदेश  भाग शामिल हैं।
  • इन वनों के वृक्ष बिखरे हुए होते हैं। इनकी जड़े लंबी तथा जल की तलाश में चारों ओर फैली हुई होती हैं। पत्तियाँ प्रायः छोटी होती हैं जिनसे वाष्पीकरण कम से कम हो सके।
  • प्रमुख वृक्ष - बबूल, नागफनी, खजूर, खेजड़ी 
  • Extra Point - पलाश के फूल आकर्षक होने के कारण  इसको जंगल की आग (Flame of the Forest) भी कहा जाता है। यह उत्तर प्रदेश एवं झारखंड का ‘राजकीय पुष्प’ भी हैं। पलाश  के फूल से होली के रंग को इसके फूल से तैयार किये जाते थे। खेजड़ी को मरुस्थल का राजा कहा जाता हैं।

पर्वतीय वन या शंकुधारी वन - भारत में हिमालयी क्षेत्र में पर्वतीय वनों का विस्तार ः

  • 1000 से 2000 मीटर की ऊंचाई पर - शीतोष्ण प्रकार के वन पाए जाते हैं। 
  • 2000 से 3000 मीटर की ऊंचाई पर - कोणधारी सदाहरित वन पाए जाते हैं।
  • 3000 से 4000 मीटर की ऊंचाई पर - अल्पाइन वन पाए जाते हैं। इन वनों का प्रयोग गुज्जर तथा बक्करवाल जातियों द्वारा पशुपालन के लिए प्रयोग किया जाता हैं।
  • पर्वतीय प्रमुख वन - भोजपत्र वृक्ष, चीड़, देवदार, जुनीपर
  • Extra Point - चीड़ के वृक्ष से ‘लीसा’ प्राप्त होता हैं जिससे तारपीन के तेल बनाया जाता हैं।

डेल्टाई वन या मैंग्रोव वन या ज्वारीय वन

  • इस प्रकार की वनस्पति समुद्र तट एवं निम्न डेल्टाई भागों में पाई जाती है। इन क्षेत्रों में उच्च ज्पार के कारण नमकीन जल का फैलाव होता है। यहाँ की मिट्टी की प्रकृति दलदली होती हैं।
  • ज्वारीय वनों को कच्छ वनस्पति, अनूप वन, वेलांचली वन अथवा मैंग्रोव वन भी कहा जाता हैं।
  • प्रमुख वृक्ष - मैंग्रोव, सुंदरी, कैजुरीना, केवड़ा,बेंदी
  • पश्चिम बंगाल के डेल्टाई क्षेत्रों में सुंदरी वृक्षों की अधिकता के कारण इस डेल्टाई क्षेत्र का सुंदरबन डेल्टा कहा जाता हैं।
👉 नीलगिरी, अन्नामलाई और पालनी पहाड़ियों पर पाये जाने वाले शीतोष्ण कटिबंधीय वनों को ‘शोलास ’ कहते हैं।
👉 इंडिया स्टेट ऑफ फारेस्ट रिपार्ट 2019 के अनुसार भारत में वनों का कुल क्षेत्रफल भारत के क्षेत्रफल का 21.67 प्रतिशत हैं।
👉 भारत विश्व के अकेला देश है जहाँ शेर तथा बाघ दोनों पाए जाते हैं। 

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